निराला की कहानी कला
हिंदी साहित्य जगत में सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ बहुमुखी
प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे | इन्होंने काव्य संवेदना के साथ-साथ ‘कथा-साहित्य’ जगत
में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है ,जिसे नकारा नहीं जा सकता है | ‘कहानी’, ‘निबंध’
एवं ‘उपन्यास’ की दुनिया में भी इनका योगदान सराहनीय है | ‘निराला’ का लगभग पूरा कथा-साहित्य
अपने समय के समसमायिक घटना एवं समाज में फैली विसंगतियां ,रूढ़ियां, जैसी समस्याओं
की ओर इशारा करता है | ‘निराला’ ने जिस तरह से कविता के क्षेत्र में ‘बादल राग’ ,’तोड़ती
पत्थर’, ‘कुकुरमुत्ता’ में क्रान्ति के प्रति उद्घोष और सामाजिक व्यवस्था के प्रति
तीव्र विद्रोह के लिए अपने काव्य में व्यंग्यात्मक शैली का प्रयोग किया है | उसी
तरह कथा साहित्य में भी उनका लक्ष्य समाज से उच्च-नीच और भेदवादी व्यवस्था का
खत्मा करना था | वो जितना ही जाति, धर्म, वर्ण-व्यवस्था के घोर विरोधी थे उतने ही
मानवीय करूणा से ओत-प्रोत भी | समाज में दबे-कुचले, शोषित जनों की मुक्ति के लिए
पूजीपतियों,जमींनदारों, एवं सत्ताधारियों के विरोधी थे | ऐसे ही सामाजिक समस्याओं
और विसंगतियों को अपने साहित्य का विषय बनाकर आजीवन संघर्ष करते रहे | निराला का
पूरा जीवन अभाव में ही बीता | अभावग्रस्तों और दलितों की पीड़ा से उनकी अर्थाभाव
में जीवन यापन करने की पीड़ा जुड़कर एक हो जाती है | मुक्तिबोध के शब्दों में खा जाय
तो –“ निराला आत्मचेतस और विश्वचेतस दोनों ही थे |”
हिंदी कहानी के क्षेत्र में निराला का योगदान सराहनीय है |
इन्होंने प्रेमचंद के समानांतर ही हिंदी कहानी में यथार्थ जीवन को नया आयाम दिया
है | निराला हिंदी कहानी को नयी दिशा एवं नयी दृष्टि देने का भी काम करते हैं |
इनका तीन कहानी– संग्रह है – ‘लिली’, ‘सखी’ और ‘सुकुल की बीवी’ | ‘चतुरी चमार’ और
‘देवी’ स्वतंत्र संग्रह नहीं है | ‘चतुरी-चमार’ ‘सखी’ का ही नया नाम है | ‘देवी’
में विभिन्न संग्रहों की चुनी हुई कहानियों को संकलित किया गया है | ‘लिली’ कहानी
के क्षेत्र में निराला का पहला प्रयास है |
‘सखी’ संग्रह जब
‘चतुरी-चमार’ नाम से प्रकाशित हुआ तो, उसकी निराला ने नई भूमिका लिखी- “मैंने
स्थायी साहित्य के सर्जन के विचार से ये कहानियां लिखी हैं | पढ़ने पर पाठकों का
श्रम सार्थक होगा, मुझको विश्वास है | भाषा भाव और विषय के विवेचन में कहानियों के
साथ उनका मन पुष्ट होगा | ‘कला’ अपने आप उनको उचाँ उठाएगी और मनोरंजन करेगी |”
निराला ने कुल मिलाकर 24 कहानियां लिखी हैं | पहली कहानी –‘प्रेमपूर्णतरंग’
को बाद में ‘प्रेमिका-परिचय’ शीर्षक से लिखा | अन्य चार कहानियां- ‘देवर का
इंद्रजाल’, ‘जानकी’, ‘दो दाने’, और ‘विद्या’ विभिन्न पत्र-पत्रिकों में छपी| लेकिन
किसी संग्रह में नहीं आ पायी थी | बाद में यह कहानियां ‘निराला रचनावली-4 में ये
कहानियां संकलित की गई |
कहानी-कला से तात्पर्य कहानी की बुनावट ,सुन्दरता यानी उसकी
खूबसूरती से है | किसी रचना या वस्तु की बुनावट को हम दो तरीके से समझ सकते हैं | पहला आतंरिक पक्ष और दूसरा
बाह्य पक्ष होता है | निराला की तरह अन्य छायावादी कवियों ने भी गद्य-पद्य दोनों ही
क्षेत्रों में योगदान दिया है | निराला की तरह अन्य कवियों का कवि रूप उनके लेखक
रूप पर हावी नहीं होता है | लेकिन निराला की कहानियों में भाव, भाषा,
कल्पना-शक्ति, अभिव्यक्ति सबमें उनका कवि रूप झलकता है |
निराला सामाजिक कथाकार हैं | इनकी कहानियों में प्रेमचंद की
तरह सामाजिक यथार्थ को विभिन्न रूपों में प्रस्तुत किया है | निराला की कहानियों
का मुख्य विषय-अंतर्जातीय विवाह, विधवा-विवाह, दहेज़, जातीयता, प्रेम सौन्दर्य के
रूप को अपनी कहानियों का विषय बनाया है- जो आज की भी सामाजिक समस्या है | नारी
जीवन और उनकी समस्याओं के प्रति भी
निराला अत्यंत संवेदनशील रहें हैं | निराला सामाजिक रूढ़ियों और परम्पराओं का खुलकर
विरोध करते हैं और स्त्री अस्मिता का खुलकर पक्ष लेते हैं | उनका मानना है –“रूढ़ियाँ
कभी धर्म नहीं होती,वे पहले की श्रुंखलाए जिसमे समाज में सुथरापन था,मर्यादा थी –अब
जंजीरे हो गयी हैं | अब उनकी बिलकुल आवश्कता नहीं | अब उन्हें तोड़कर फेंक देना
चाहिए | जिन लोगों ने ऐसा किया वही लोग देश में पूजनीय हो रहे हैं |”(1)
निराला की कहानियों में आत्मानुभूति का तत्व अन्य
कहानीकारों से ज्यादा आता है |यही कारण है कि निराला की कहानियों में निराला के
व्यक्तित्व का निरालापन ज्यादा आ जाटा है | कुछ कहानियों में तो वह खुलकर सामने आ
जाते हैं | इनकी कहानियां व्यक्ति जीवन की समस्या होने के साथ-साथ पूरे समाज की की
समस्या का बोध कराती है अर्थात ये कहानियां व्यक्तिमुखी से समाजमुखी की ओर अग्रसर
है |
इनकी कहानियों को तीन भागों में बांटकर अध्ययन किया जा सकता
है |
Ø पहली वे कहानियां जिसमें छायावादी रूमानी-भावुकता से प्रेरित सुधारवादी
आदर्श के माध्यम से नये सामाजिक संदर्भों में उत्पन्न जीवन के नए वास्तविक
प्रश्नों का समाधान प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है |
Ø दूसरी वे कहानियां जिसमें
समाधान की स्पष्टता के अभाव में पात्र या तो प्रतिशोध की भावना से ग्रसित हैं या
आध्यात्मिक विश्वासों में अथवा आध्यात्मिक के साथ जीवन-यथार्थ का समन्वय करने में भटकता है |
Ø तीसरी वे कहानियां जिसमे
जीवन यथार्थ की गति की दिशा के अनुकूल नया आदमी आकार ग्रहण करता हुआ दृष्टिगोचर
होता है |(2)
निराला की अधिकांश कहानियां नारी पर आधारित हैं
| कहानी का शीर्षक भी स्त्री के नाम पर ही रखा गया है | ‘पद्मा और
लिली’,ज्योतिर्मयी, सानी, कमला, श्यामा, हिरनी देवी, ‘सुकुल की बीवी’, ‘जानकी’ और
कुछ कहानियां ऐसी भी हैं जिसमे नारी स्वयं भूमिका अदा करती है – क्या देखा,न्याय ,
दो दाने |
निराला की ‘देवी’ कहानी की कहानी-कला अंग्रेजी
की ‘शोर्ट-स्टोरी’ के आधार पर एक नयी कला का विकसित रूप है | ‘देवी’ कहानी शिल्प
एवं कला दोनों दृष्टि से विचार करने पर
हमें कमजोर नजर आती है | कहानी तत्वों के आधार पर देखा जाय तो पूर्ण कहानी लगती है
| लेकिन जब हम कहानी के कहानीपन या उसकी आत्मा की तलाश करते हैं तो कहानी की आत्मा कहानी से गायब रहती है | जैसे-
‘देवी’ कहानी में देवी को एक संघर्षशील स्त्री के रूप में चित्रित न करके एक पागल
स्त्री पर करूणा की बौछार की गई है | जिस कारण कहानी का अंत में कोई निष्कर्ष
स्पष्ट भी नहीं हो पाता है | ‘देवी’ कहानी की भाषा में वाचलता एवं व्यंग्यधर्मिता
का समावेश हुआ है | स्थानीय भाषा और मुहावरों का प्रयोग भी भाषा में हुआ है |
कहानी में रूपक के माध्यम से देवी के अन्दर पूरे भारत की तस्वीर देख सकते हैं |
कहानी में ‘देवी’ का बच्चा भी रूपक के रूप में आता है, जो सामंतों द्वारा कुचला जा रहा है | उसकी स्थिति
यह बताती है की आने वाले समय में देश का भविष्य क्या होगा | इस प्रकार हम देखते
हैं कि निराला बनी बनाई कला रुपी कहानी की शिल्प को तोड़ने का काम करते हैं |
निराला अपनी कहानी में अन्य कहानीकार की परम्परा को आगे नहीं बढ़ाते बल्कि अपनी
कहानी कला के माध्यम से एक अलग ही स्कूल की स्थापना करते हैं | जिस परंपरा को बाद
में किसी ने आगे नहीं बढ़ाया |
‘राजा साहब को ठेंगा दिखाया’- कहानी में एक ओर
सामंती तो दूसरी ओर वर्ण-व्यवस्था के कारण उत्पन्न परिस्थितियों को उजागर की गई है
| इस कहानी का पात्र ‘विश्वम्भर’ वर्ण-व्यवस्था का हिमायती होता है, जो
जीविकोपार्जन के साधन के रूप में मंदिर
में पूजा करता है | लेकिन ब्राह्मण होने के कारण वह अन्य दूसरा काम, अपने वर्ग के
खिलाफ नहीं करना चाहता है | इस कहानी में सामन्ती परिवेश को मूर्त करने का भी काम
किया गया है |
निराला की कहानियों का चित्रण यथार्थ के धरातल
पर किया गया है | लेकिन उसमें आत्मकथात्मकता का तत्व इतना ज्यादा होता है कि
कहानी को कहानीपन में डूबने नहीं देता है | जिस कारण ‘कहानी’ कहानी न होकर घटना
मात्र बनकर रह जाती है |
‘ज्योतिर्मयी’ कहानी में निराला विधवा-विवाह की
समस्या को उठाते हैं | विधवा विवाह की समस्या सवर्णों में आज भी बनी हुई है | इस
कहानी में एक संवाद है –“पतिव्रता पत्नी तमाम तपस्या करने के बाद स्वर्ग में अपने
पति से जाकर मिलती है|” इस बात का जवाब देते हुए ज्योतिर्मयी कहती है –“अच्छा
बताइए तो, यदि पहले ब्याही स्त्री इसी तरह से स्वर्ग में अपने पूज्य पति-देवता की
प्रतीक्षा करती हो, और पतिदेव क्रमश: दूसरी, तीसरी, चौथी पत्नियों को मार–मार कर
प्रतीक्षार्थ स्वर्ग भेजते रहें, तो खुद
मरकर किसके पास पहुंचेंगे |” निराला अपनी कहानियों में प्रश्न ही नहीं उठाते बल्कि
समाधान की राह भी निकालते हैं |
दलितों और शोषितों के प्रति निराला के हृदय में
करूणा और सहानुभूति का भाव है | ‘देवी’ और ‘चतुरी-चमार’ कहानी में पात्रों का दर्द
और उनकी अपनी समस्या निराला को अपनी समस्याओं से जोडती है | निराला के अन्दर
आत्मीयता का भाव प्रचुर मात्रा में भरा हुआ है |
निराला की अधिकांश कहानियों में उनका जीवन
प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में आया है | कुछ कहानियां संस्मरणात्मक हैं | जैसे- ‘सुकुल
की बीवी’, ‘श्रीमती गजानंद शास्त्राणी’, ‘कला की रूपरेखा’| सुकुल की बीवी कहानी
संस्मरण और कहानी दोनों रूपों को ग्रहण करती है | इस कहानी में निराला अपने सहपाठी
सुकुल के स्कूली जीवन की तस्वीर को खीचते
हैं |
‘दो दाने’- यह कहानी विश्वयुद्ध के बाद उत्पन्न
देश की आर्थिक परिस्थितियों का दस्तावेज है | द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद देश की
आर्थिक स्थिति खराब हो जाती है | उस समय का चित्रण हुआ है |
‘विद्या’- इस कहानी में निराला भाषा के सवाल को
उठाते हैं | कहानी में दो पात्र हैं | दोनों के बीच संस्कृत और अंग्रेजी को लेकर
बहस होती है | एक संस्कृत को महत्व देता है तो दूसरा अंग्रेजी का हिमायती होता है
| यह कहानी हिंदी बनाम अंग्रेजी की समस्या को बताती है | निराला की यह कहानी उस
समय को चित्रित करती है जब कुछ लोग हिंदी को देश की राष्ट्रभाषा बनाने से पीछे हट
रहे थे |
इस प्रकार हम समझ सकते है कि निराला भी अपने
समकालीन अन्य कहानीकारों की तरह सामाजिक समस्याओं को आधार बना कर लिख रहे थे,
लेकिन इनकी राह अन्य कहानीकारों से बिलकुल अलग थी | जैसा भी हो निराला के कथा
साहित्य में कहानी के बने बनाए ढ़ाचे को चुनौती देते हैं | भाव और भाषा के क्षेत्र
में परिवर्तन करके रचना को बंधनों से मुक्त करने की कोशिश करते हैं | अपनी कहानी
कला के माध्यम से समाज को भी चुनौती देते हैं कि स्वतंत्र और बन्धनों से मुक्त
होकर समतामूलक समाज की स्थापना करो | निराला का हिंदी साहित्य जगत में काव्य और
कथा साहित्य दोनों क्षेत्र में बहुत बड़ा योगदान रहा है |
संदर्भ-ग्रन्थ सूची :-
1. नंदकिशोर
‘नवल’(सम्पादक) निराला रचनावली भाग-4
राजकमल प्रकाशन –तृतीय
संस्करण
1992 नयी दिल्ली
2.इन्द्रनाथ मदान - ‘निराला’
लोक भारती प्रकाशन (इलाहाबाद)
लेख-
3.डॉ चंद्रेश्वर कर्ण - ‘सामाजिक सरोकार के कहानीकार निराला’
(1)पृष्ठ-155 परिषद्
पत्रिका(बिहार राज्य भाषा परिषद)
अंक -133-136(जुलाई
-1998)
4.राम गोपाल सिंह - कहानी-साहित्य
(2)पृष्ठ-187 परिषद् पत्रिका(बिहार राज्य भाषा परिषद)
अंक -133-136(जुलाई -1998)
नाम – मंजू कुमारी
पता – रूम.न. 245, गोदावरी हॉस्टल
जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय
नई-दिल्ली -110067
ई-मेल – manjoo89jnu@gmail.com
मोब.न.-09871593794, 9013350482
निराला का पूरा कथा साहित्य सामने आ गया।
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