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Tuesday, January 19, 2016

Manjoo JNU Blogs:Safur [सफर], Aahsaas [एहसास], Dost Aur Yadein[दोस्त और यादें], किरण: जिंदगी के लिए

January 19, 2016 0 Comments
Manjoo JNU Blogs:

 मुहब्बत खीच लायी है ,हमें इस आशियाने में नहीं तो कौन पूछता है किसी को , इस जमाने में ||

सफर

इस बनते –बिगड़ते सफ़र में
सबसे अलग अपनी दुनिया है
यहाँ पर साथी हजार हैं,
चाहने वाले हजार हैं
पर उनमे अपनेपन का वो एहसास नहीं...
चाहकर भी किसी को अपना, न सकी
जिसको चाहा भी
 उसे एहसास ही नहीं
 सफ़र के इस भीड़ में
सभी है शामिल ...
यहाँ पर कोई साथी , कोई अपना नहीं ,
खुद गिर के खुद ही सभलना है
इस कीमती समय को मै गवाना नहीं चाहती
यह एहसास है कि...
हर क्षण बहुत तेजी से बिताता जा रहा
है
मंजिल पास होकर भी
बहुत दूर नजर आ रही है
दुविधा में हूँ , करूँ तो क्या ?
अपने आप को सभालू तो कैसे ?
जबकि –
पता है, इक छोटी सी चूक
मंजिल से हजारो कोस दूर कर सकती है
हमें ||
-सरगम


             एहसास

शायद ! मेरी चाहत ,
मेरी तड़प और मेरा वह इन्तजार,
सब कुछ व्यर्थ था, किसी के लिए ,
दिल में बसी मन की उमंग ,
मिलन की लहर और उसकी तड़प,
पल –पल का वो एहसास ,
इक पल के लिए ही सही ,वह मिलन की चाह
,
दिल में संजोए इस एहसास को ,
कल्पनाओं के गगन में ,
उड़ी जा रही थी मै ,
उस कटी पतंग की तरह ,
विंदास, मस्तमौला, अपनी ही धुन में ,
जिंदगी के सफ़र में ,
 बस इक उम्मीद के सहारे ,
केवल तुम्हारे लिए ...
हर उस ख़ुशी और गम को ,
सहती जा रही थी मै ,
उन्मुक्त कटी डोर की पतंग की तरह ,
शायद !
कोई नहीं थी मंजिल मेरी ,
उस कटी पतंग की तरह ,
जिंदगी की स्लेट पर लिखे ,
मेरे अर्मानों के लेख को ,
दिल के उस उमंग, उस एहसास को ,
पल भर में साफ़ कर डाला ,
तुम्हारे इक शब्द ने रबड़ की तरह ,
शायद...
मेरी चाहत ,मेरी तड़प,
मेरा वह इन्तजार, सब कुछ व्यर्थ था ,
किसी के लिए ...
                    -सरगम  

                
          दोस्त और
यादें
(विदाई समारोह जे.एन.यू. एम्.ए.)

बचपन से उछलती,
कूदती रही मै चंचला ,
प्यार भी क्या चीज है ,
अपने ही नहीं दोस्तों ने भी रखा मुझे
,
नाजुक कली की तरह ,
गलतियां हजारो मैंने किया ,
परेशान तो मैंने परडे किया ,
गुस्से में कुछ भी बोलती थी मै ,
गुस्सा भी आ जाता था दोस्तों को ,
अपनापन भी क्या चीज है –
एक दोस्त से दूसरे दोस्त ने ही कहा ,
छोड़ दे यार बच्ची है अभी... -2
दोस्त ,सीनियर,यहाँ तक की ,
‘सर’ ने भी रखा मुझे बच्ची की तरह ,
और मैं रही हमेशा खुश, मस्तमौला|
जब एहसास हुआ,आज इस अनोखे प्यार का ,
मैं थोड़ा सहमी, फिर सोचा ,
कोई नहीं...
दोस्तों का यह प्यार ,यादों में रहेगा
हमेशा ,
जिंदगी में इक किरण की तरह ||
                              -सरगम

          किरण: जिंदगी
के लिए

कभी रखा गया नहीं बंदिशों में मुझे ,
भाई-बहनों में प्यार इक जैसा मिला ,
हर तरह की आजादी दी गई मुझे ,
बचपन से रही मैं चंचला ,
यह एहसास कभी हुआ ही नहीं ,
लड़की हूँ  मैं, रहूँ मैं लड़कियों की तरह |
अपने ही समाज में भेद-भाव को देखा है
मैंने ,
लडकियां पाप की निशानी है
और लड़के वरदान हैं पूर्वजन्म के ,
इसी अंधविश्वास ने बनाना ,
अपाहिज पूरे समाज को |
लडकियां पढ़ाई जाती हैं सिर्फ शादी के
लिए -
हमेशा परम्परा और संस्कार का
पाठ पठाया जाता है इन्हें ,
बड़े होने के साथ-साथ
 बंदिशों में जकड़ा जाता है इन्हें ,
जिंदगी के सफ़र में पर काट दिए जाते
हैं इनके ,
चाहकर भी उड़ पाती नहीं ,
आसमान में खुले |
इक छोटी सी गलती पर भी ,
कुचला जाता है इन्हें ,
हर बार एक ही फार्मूला रटाया जाता है-
लड़की हो, रहो तुम, लड़कियों की तरह ,
वैसे भी पाप बनकर आई हो यहाँ |
अपने समाज से ऐसी सोच को ,
बदल देना चाहती हूँ मैं ,
हमेशा कुछ करने के लिए ,
इनकी स्वतंत्रता के लिए
तड़पती हूँ मैं
पर कुछ कर पाती नहीं |
इतना तो पता है मुझे कि—
हाथ –पाँव चला सकती नहीं
पर बनाऊंगी शिक्षा को तलवार
बनूँगी मिशाल उन परिंदों के लिए
 किरण बन के चमकूंगी
उनकी जिंदगी के लिए
मिटाउंगी अन्धेरा, उनकी रोशनी के लिए
||


                                -सरगम