Tuesday, January 19, 2016

Manjoo JNU Blogs: Kavitayain

January 19, 2016 0 Comments
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कविता इक तलाश

आज तक थी मुझे जिसकी तलाश
वह नज़र आयी मुझे आपकी नज़्म में,
कि-
करते हैं सृजन कैसे कवि-2
दुःख,दर्द और प्रेम के राग को भरते हैं कैसे कवि,
क्या इसके लिए प्रेम करना जरुरी है?
क्या इसके लिए दुःख, दर्द सहना जरुरी है?
हाँ-हाँ,
अब समझ में आया कि कविता करते हैं कैसे..
अपनों को याद करते हैं कैसे...
अपनों में दुनिया को रखते हैं कैसे ...
दुनिया के दुःख,दर्द को समझते हैं कैसे...
अपनी कविता में इस दर्द को भरते हैं कैसे...
वह नजर आया मुझे आपकी नज़्म सुनने के बाद
हाँ अब समझ में आया
कविता करते हैं कैसे ?
आज तक थी मुझे जिसकी तलाश
वह नज़र आया मुझे आपकी नज़्म में |
प्रेम की जीवन है, संघर्ष का आधार है,
प्रेम ही जीवन में रस का संचार है,
इसके बिना जीवन बेकार है,
प्रेम ही वह अमृत है जिसके लिए दुनिया बेकरार है,
किन्तु ऐसे प्रेम के लिए नहीं
जो कामुकता का दूसरा रूप है,
बल्कि
ऐसा प्रेम जिसमें सच्चा आधार हो,
क्षमा, दया, और प्यार हो,
प्रेम ही जीवन जीने का आधार है,
इसके बिना जीवन की कल्पना बेकार है,
प्रेम कहते हैं किसे---
यह नज़र आया मुझे आपकी नज़्म “फोटो” में,
प्रेम वह आधार है जिसके बिना कविता बेकार है,.....सरगम


    इरादे और सफर
  
आज जब महसूस करती हूँ
सब कुछ समझती हूँ
बदल दिए अपने इरादे
अपनी दिशा,
अपने तक ही सीमित था जिसका किनारा
क्योंकि बदलता चाहती हूँ मैं सबसे पहले खुद को
रहना चाहती हूँ
अपनी पुरानी दुनिया में
जहाँ कोई समझौता नहीं था
न हमें जिंदगी से
न जिंदगी को हमसे  
सब कुछ ठीक था
सब कुछ अनोखा था
रहस्यमय था मेरे लिए |
जिंदगी में रहस्य की अहमियत आज भी है
जिंदगी को खुश नुमा और हसीन बनाने के लिए
जिंदगी अगर खुली किताब हो गई
और उसका पन्ना-पन्ना पढ़ लिया गया
फिर शेष बचा ही क्या
कुछ भी तो नहीं|
सब कुछ तरकीब के हिसाब से हुआ तो क्या हुआ
बिना हलचल भरी जिंदगी को जिया तो क्या जिया | -सरगम



बेचैनी मन की


लोग समाज और हम
सभी है किसी और के हाथ की कठपुतली
हम नाच रहे हैं किसी और के इशारे पर
चाह भी नहीं मुकर्र है हमारी
हम कर वही रहे हैं जो हम नहीं चाहते
अगर चाहते भी है तो चाहत को रूप कोई और देता है
है किसी और के हाथ में बागडोर हमारी
फिर क्यों हम जुड़ जाते हैं किसी और के साथ
अलग–अलग चाहत और अरमानों के साथ
क्यों हम सब पर,
बस अपना अधिकार चाहते हैं
क्यों हम दुनिया की सभी चीजों पर विजय पाना चाहते हैं?
सब कुछ चाहते हुए भी
सब कुछ अर्पित करते हुए भी
हम सभी
समाज के लोग और हमारी संस्कृति
हमारी परंपरा के वाहक और हम
क्यों ?
क्यों हमें सुकून नसीब नहीं|
आखिर क्या है यह दुविधा ?
जो चाहते हैं उसका भी भान नहीं हैं हमें
सब कुछ को भविष्य के हवाले करके
जिंदगी को क्यों हम नीरस और महफूज बनाते चले जा रहे हैं
क्या है बदलते समय की मांग
क्या है आज की असलियत
यहाँ तो सभी के चहरे पर मुखौटा हैं,
फिर भी क्षणिक ख़ुशी
स्वार्थ भरी चाहत और दुनिया की मांग
सभी पर अपना अधिकार बनाने के लिए
हम विवश है क्यों?
अगर सभी से निस्वार्थ भाव से
हो सकता हमारा जुड़ाव
और हम बिना नफे-नुकसान के
बिना किसी ग्लानि के
बस यह सोच कर आगे बढ़ सकते कि-
केवल अपना कर्तव्य निहारों तुम
जिनके प्रति जितना है...|
जी लो, घूम लो अर्पित-समर्पित कर दो
अपनी ख़ुशी अपनी जिंदगी
सबकी ख़ुशी के लिए
सभी बाधाओं से मुक्त हो,
जिओं तुम जिंदगी,
बिना किसी नफे-नुकसान के
क्योंकि-
हैं हम कठपुतली किसी और के हाथ की || - सरगम 







Manjoo JNU Blogs:Jab Tum Mile [जब तुम मिले].[दोस्ती आज कल]

January 19, 2016 0 Comments
Manjoo JNU Blogs:



जब तुम मिले
जब तुम मिले,
ऐसा लगा बदला है जहाँ
अलग उमंग, एक अलग सा एहसास
और बदला – बदला सा समां  
इक अलग सी दुनिया में,
कहीं खो गई थी मैं|
ऐसा लगा, मंजिल की रफ़्तार तेज हुई,
और मैं,
बहुत तेजी से, दिल में इक उमंग लिए,
बही जा रही थी,
सफर में चलते हुए
मंजिल की तरफ साथ-साथ,
तुम्हें ले जाना चाहती थी मैं,
शुरू में जब तुमसे मिली,
ऐसा लगा -
तुम्हें, जरूरत है मेरी,
आगे बढ़ी, तो तुम भी जरूरत बने मेरी
अपनेपन के एहसास ने हमें
बहुत करीब कर दिया |
तुम्हारे एहसास ने
तुम्हारे व्यवहार ने
दिल में जगह बनाई मेरे |
इतने सहज थे तुम मेरे लिए
मेरी हर-एक शरारत को,
हर-एक नादानी को,
अपने दिल में जगह दी तुमने,
शायद ये दूरियां,
अलग रहने के एहसास ने,
हमें अलग कर दिया |
आज जब तुमसे बात करती हूँ,
अपने एहसास को,
प्यार की तड़प,
तुमसे कुछ कहना चाहती हूँ,
तुमसे कुछ सुनना चाहती हूँ,
तुम टाल देते हो, एक अजनबी की तरह
जिद्द करने पर डांट देते हो,
यह सोचकर कि-
साथ छोड़ देगी मेरा... |
बस ! अब और  नहीं...
एहसास हो चुका है मुझे,
सच में, अलग होना चाहते हो तुम
अपनी दुनिया अलग बनाना चाहते हो तुम
दिल भी समझ चुका है मेरा,
दूर होने से डरता है,
पर समझौता भी, पसंद नहीं है इसे |
काश ! इतना बता सकते-
क्या वजह है, क्या खता है मेरी,
या ऐसी क्या मजबूरियां हैं तुम्हारी,
जिसकी वजह से तुमने, सब कुछ भुला दिया,
अपने प्यार के एहसास को, दिल से मिटा
दिया  ||
     (18-०5-14)  - सरगम


चले जाओं
प्लीज अब चले जाओं,
दूबारा पास न आओं,
अब भूला देना चाहती हूँ मैं,
वह सब कुछ,
वो यादें,
वो बातें,
वो सब कुछ |
अब मैं बंधना नहीं चाहती,
इशारों पर, चलना नहीं चाहती,
जिंदगी के चंद लम्हों ने,
बहुत कुछ सिखाया मुझे,
अब जिंदगी केवल, ‘जिंदगी’ के लिए
उसे पाने के लिए,
अर्पित करना नहीं चाहती,
हाँ ये सही है -
आज भी तुम्हें ही, चाहती हूँ,
चाहूंगी हमेशा...
वो जगह किसी और को,
कभी देना नहीं चाहती,
पर अब तुम्हें पाना भी नहीं चाहती...
|
क्योंकि –
मैं दूबारा तड़पना या रोना नहीं चाहती
|
बहुत मुश्किल से सभाला है,
मैंने अपने आपको,
दूबारा अपने ही पैरों में, खंजर धसाना
नहीं चाहती |
अब मैं उड़ना चाहती हूँ,
खुले आसमान में,
जिंदगी के हर पल को महसूस कर,
जीना चाहती हूँ,
जिंदगी को,
अर्पित करना चाहती हूँ
उन बेजान परिंदों के लिए
जो मेरी तरह, अपने सपने लिए
निकल चुके हैं –
तिनके की खोज में |....(23-05-2014)
सरगम


दोस्ती आज
कल
दोस्ती और दोस्त
सब कुछ
बस
एक ही
फार्मूले पर अर्पित, समर्पित
हो चुका है...
किसी को पाने की आस !
किसी को अपना बनाने की आस !
सारे रिश्ते की बुनियाद ही स्वार्थ है
आधुनिक रिश्ते,
दिल दोस्ती,
सब
बिना नींव के उस मकान की तरह
होते जा रहे हैं  
जो कभी भी ढहाये जा सकते हैं |
स्वार्थ से बने रिश्ते
रिश्ते की बुनियाद
जिसकी नींव तो है  
पर वो मजबूती नहीं रही अब,  
जो विपरीत परिस्थितियों में  
बिचलित होये बिना
हो सके समर्पित
दे सके साथ दोस्ती का हमेशा...
नि:स्वार्थ भाव से  
बस दोस्त की ख़ुशी के लिए
अब ऐसा नहीं रहा,
बदलते समय और समाज ने
बदलती आधुनिक मानसिकता ने
सब कुछ बदल दिया
सारे रिश्ते की बुनियाद को
स्वार्थ के खंज़र से,
खोखला कर दिया ||   (15/06/2014) - सरगम   

डायरी के पन्नों से

डायरी के पन्नों के बीच
छुपाती हूँ तुम्हारे एहसासों को
अपने एहसासों के बीच
महसूस करती हूँ
तुम्हें और तुम्हारे संसर्ग को
इस बीच-
रुक जाती है साँसे मेरी
कलम ठहर जाती है,
और मैं खो जाती हूँ,
यादों के बीच, गहरे अनंत में कहीं |
बीते पल की यादों के बीच
मैं सिहर जाती हूँ,
अपने एहसासों के बीच
अनछुई कली की तरह
चेहरे की हल्की सी मुस्कान
छू लेती हैं मुझे,
उमंग भरी मस्तानी पवन की तरह |
शब्दों से बनी तस्वीर में तुम्हें,
पाकर
तुम्हारें एहसासों के बीच,
अपने हर पल के एहसासों को
महसूस कर जी लेती हूँ मैं,
डायरी के पन्नों के बीच || - सरगम (6.30pm
19-04-2014)        




नव वर्ष
मंगलमय हो ||



नयी ख़ुशी,
नयी उमंग
नयी दिल्लगी,
और अपने सपनों के साथ
मंजिल की तरफ
हर एक कदम बढ़ते हुए,
संसार की आपा-धापी में हम
कदम-कदम
आगे की ओर
अपनी मंजिल की तरफ बढ़ते हुए,
समय के साथ
हर इक पल और हर इक एहसास को,
महसूसकर जीते हुए....

किसी वीरान दुनिया की तरफ
बढ़ते जा रहे हैं,   
उस वीरान दुनिया की विरानियत ने हमें,
अपने एहसासों,
अपने रिश्तों,
अपने संबंधों,
सभी एहसासों से हमें जुदा कर दिया,
जो रोशनी थी हमारी जिंदगी के लिए...
फिर भी-
हम मुसाफिर है सफ़र के लिए
जिंदगी हैं जिंदगी के लिए
हम एक किरण हैं सबकी रोशनी के लिए ||(31-12-2014, १०.०८pm)



        याराना

दिल, दोस्ती और मस्ती,
ऐसी याराना है हमारी दोस्ती
दोस्तों की दोस्ती,
दोस्तों की मस्ती,
दोस्तों की दिल्लगी,
सभी रिश्तों से निराली है उनकी दोस्ती,
एक-दूसरे की खीच-तान,
हर वक्त मस्ती और मस्तानी अदायगी के बीच
एक दूसरे की ख़ुशी और दुःख को
सागर की विशाल गहराई की तरह 
अपने में समाहित कर
बलखाती लहरों की तरह  
खुशी और उम्मीद भरी
नई आशा के साथ
जिंदगी में एक किरण की तरह
हमेशा रोशनी बनके चमकती है दोस्ती
इसलिए-
जहाँ में सभी रिश्तों से निराली है दोस्तों की दोस्ती ||
(३१-१२-२०१५ टाइम-१०.४५pm)



नया साल -----


 

आखिर क्या चाहती हो तुम ?
जिंदगी ! मैं तुमसे सवाल करती हूँ.
एक पल ख़ुशी,
एक पल गम,
कुछ चाहत और कुछ ख़्वाबों के बीच,
क्यों फँसाती–रिझाती हो तुम |
ऐसी मीठी तडप,
और तीखे एहसासों की कैदखाने से,
निकलना चाहती हूँ मैं,
सब कुछ भूला,
सब कुछ मिटा,
जिंदगी अपनी तरह से जीना चाहती हूँ मैं,
पर ऐ जिंदगी-
तुझ पर कोई कंट्रोल नहीं है मेरा |
सच में-
मैं तुम पर कोई कंट्रोल चाहती भी नहीं,
बस,
एक एहसान कर मुझ पर,
तू ऐ जिंदगी-
मेरी साँसों, मेरे एहसासों
और मेरे ख़्वाबों को,
अपनी कैद से मुक्ति दे तू,
जिससे, जी सकूं मैं भी
बदलते समय के साथ
अपनी शर्तों पर |
आखिर क्या चाहती हो तुम ?
जिंदगी ! मैं तुमसे सवाल करती हूँ.... |
  
     




         ‘सौदागर हो
तुम’

सच में-
बहुत अक्कडू हो तुम
हो तीखी धार, पर तलवार हो तुम,
हो तो बहुत ही सहज
सरल और धैर्यवान हो तुम,
पलटवार करना कोई तुमसे सीखें,
नया रूप, नया अर्थ
शब्दों में भरना कोई तुमसे सीखे |
हो तुम ज्ञान के भण्डार
पर बातों के सौदागर हो तुम,
भर देते हो जान,
कर खुशनुमा चौपाल को तुम,
पर चूकते कहीं नहीं तुम
अपना रोब दिखाने से |
सच्चे हो,  ढृढ़ हो...
नटखटी हरकतों से भी भरपूर्ण हो तुम,
पर दिव्यज्योति नाम के अनुरूप हो तुम,


हो तो तीखी धार, पर तलवार हो तुम ||(4pm 07-05-2014)एडिट०७-०२-२०१५)