Tuesday, January 19, 2016

Manjoo JNU Blogs: दलित स्त्री, दलित काव्य संवेदना

Manjoo JNU Blogs:

 मुहब्बत खीच लायी है ,हमें इस आशियाने में नहीं तो कौन पूछता है किसी को , इस जमाने में ||


 

  दलित स्त्री

जिंदगी वास्तव में-
दोहरा अभिशाप है दलित स्त्री की
समाज से ही नहीं अपनों से भी छली जाती
हैं ये
समाज में स्त्री होने की ही नहीं
अछूत होने की भी
विदारक पीड़ा को सहती हैं ये
आक्रोश संघर्ष के साथ
जिंदगी में बस इक उम्मीद के सहारे
होगा नया सबेरा हमारे भी जीवन में |
थोंडा सा विचलित हो जाती हैं
जब अपनों से ही ठगी जाती हैं ये
फिर भी ये डरती नहीं
आत्महत्या करती नहीं
देती हैं चेतावनी
उस पितृसत्तामक व्यवस्था को
जिसकी वजह से रही
ये अपाहिज सदा के लिए ||
                        -सरगम


          



            दलित काव्य
संवेदना

पारलौकिक  जगत की संवेदना को
लौकिक यथार्थ जगत पर उतारती हैं
 दलित कविताएं
कल्पना की दुनिया में नहीं
यथार्थ जगत का चित्र दिखलाती हैं
दलित कविताएँ  
समाज से ब्राह्मण,पंडितों को नहीं
समाज में पनपे ,जातिवाद वर्णव्यवस्था
को
मिटा देना चाहती हैं
दलित कविताएँ
समाज में ऊचं –नीच का नहीं
सबको समता और सम्मानपूर्वक जीने का हक़
दिलाना चाहती हैं
दलित कविताएँ
समाज में फैली रोशनी को नहीं
अँधेरे को मिटा देना चाहती हैं
दलित कविताएँ
अब आ चुकी है दलितों में भी चेतना
उस चेतना की झलक दिखलाती हैं
दलित कविताएँ ||
                   -सरगम



No comments:

Post a Comment